कावर क्या होता है ?
'क' ब्रह्म का रूप है और 'अवर' का जीवन के लिए प्रयुक्त होता है। 'क' मैं अवर की संधि करेंगे तो कावर बनेगा। यही कावर उच्चारण दोष के कारण पहले कावर फिर कावड़ बन गया।वस्तुतः कावड़िया शिवभक्ति का सामूहिक प्रदर्शन करने के बहाने तीनों देवों (ब्रह्मा, विष्णु और महेश )की आराधना का फल पाना चाहता है।
कावड़ का महत्व क्या है ?
यह जल एक पवित्र स्थान से अपने कंधे पर ले जाकर भगवान शिव को सावन के महीने में अर्पित किया जाता है। इसी यात्रा के दौरान भक्त बम बम भोले के नारे लगाते हुए पैदल यात्रा करते हैं। कहा यह भी जाता है की कावड़ यात्रा करने वाले भक्तों को अश्वमेध यज्ञ के समान पुण्य मिलता है।
कावड़ यात्रा कब और किसने शुरू की ?
कावड़ यात्रा कब और किसने शुरू की ? इस विषय में कुछ विद्वानों में मतभेद है वैदिक और पौराणिक ग्रंथों के अनुसार पहले कावड़िया
१. परशुराम थे पहले कावड़िया- कुछ विद्वानों का मानना है कि सबसे पहले भगवान परशुराम ने उत्तर प्रदेश के बागपत के पास स्थित पुरा महादेव का कावड़ से गंगाजल लाकर जलाभिषेक किया था। परशुराम, इस प्राचीन शिवलिंग का जलाभिषेक करने के लिए गढ़मुक्तेश्वर से गंगा जी का जल लाए थे आज भी इस परंपरा का पालन करते हुए सावन के महीने में गढ़मुक्तेश्वर से जल लाकर लाखों लोग पुरा महादेव का जलाभिषेक करते हैं। गढ़मुक्तेश्वर का वर्तमान नाम ब्रजघाट है।
२. श्रवण कुमार थे पहले का बढ़िया- वही कुछ विद्वानों का कहना है कि सर्वप्रथम त्रेता युग में श्रवण कुमार ने पहली बार कावड़ यात्रा की थी। माता पिता को तीर्थ यात्रा कराने के क्रम में श्रवण कुमार हिमाचल के ऊना क्षेत्र में थे जहां उनके अंधे माता-पिता ने उनसे मायापुरी यानी हरिद्वार में गंगा स्नान करने की इच्छा प्रकट की।
३. भगवान राम ने की थी कावड़ यात्रा की शुरुआत- कुछ मान्यताओं के अनुसार भगवान राम पहले कावड़िया थे ।उन्होंने बिहार के सुल्तानगंज से कांवड़ में गंगाजल भरकर बाबा धाम में शिवलिंग का जलाभिषेक किया था ।
४. रावण ने की थी इस परंपरा की शुरुआत - पुराणों के अनुसार कावड़ यात्रा की परंपरा, समुद्र मंथन से जुड़ी है ।समुद्र मंथन से निकलने वाले हलाहल विष को पीने के कारण भगवान शिव का कंठ नीला हो गया और वे नीलकंठ कहलाए । परंतु विष के नकारात्मक प्रभावों में शिव को घेर लिया।
शिव को विष के नकारात्मक प्रभाव से मुक्त कराने के लिए उनके अनन्य भक्त रावण ने ध्यान किया तत्पश्चात कांवड़ में जल भरकर रावण ने 'पुरा महादेव' स्थित शिव मंदिर में शिव जी का जलाभिषेक किया । इससे शिवजी विष के नकारात्मक प्रभावों से मुक्त और यहीं से कावड़ यात्रा की परंपरा का प्रारंभ हुआ।
५.सर्वप्रथम शिवजी का देवताओं ने जलाभिषेक किया था।
कुछ मान्यताओं के अनुसार समुद्र मंथन से निकलने वाले हलाहल विष के प्रभावों को दूर करने के लिए देवताओं ने शिव पर पवित्र नदियों का शीतल जल चढ़ाया था सभी देवता शिवजी पर गंगा जी से जल लाकर अर्पित करने लगे । सावन मास में कांवड़ यात्रा का प्रारंभ यहीं से हुआ।
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Jay bhole ki
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