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पावन वाल्मीकि प्रकट उत्सव कब है ? पावन वाल्मीकि प्रकट उत्सव कब से मनाया जाता है ? और धार्मिक महत्व

2023 में पावन वाल्मीकि प्रकट उत्सव कब है ? पावन वाल्मीकि प्रकट उत्सव कब से मनाया जाता है ? और धार्मिक महत्व


वाल्मीकि प्रकट उत्सव आदि धर्म प्रेमियों का सबसे पुराना सबसे प्रसिद्ध त्यौहार है जो हर वर्ष अश्विन के महीने में शरद पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है। पूरे देश में पावन वाल्मीकि प्रकट उत्सव पूरे हर्षोल्लास और धूमधाम से मनाया जाता है। जिसमें बढ़-चढ़कर आदि धर्म प्रेमी भाग लेते हैं। इस दिन दयावान वाल्मीकि जी के मंदिरों को फूलों से  सजाते हैं। और मंदिरों में रोशनी करते हैं। जिससे सारा वातावरण पवित्रता और प्रसन्नता से भर जाता है।


पावन वाल्मीकि प्रकट उत्सव तिथि :- 

शनिवार 28 अक्टूबर 2023


पावन वाल्मीकि प्रकट उत्सव समय:

शरद पूर्णिमा तिथि शुरू 

सुबह 04:20 - 28 अक्टूबर 2023

शरद पूर्णिमा तिथि खत्म 

सुबह 01:50 - 29 अक्टूबर 2023

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पावन वाल्मीकि प्रकट उत्सव कब से मनाते हैं ?


एक दिन भारद्वाज का मन व्याकुल हो उठा। उन्होंने अपने दादा ब्रह्मा जी से अपने मन का हाल कहा,' मुझे ऐसी वस्तु चाहिए जिसे पाकर दूसरी कोई इच्छा न रहे, जिसके बदल जाने का भय न हो, जिसका न आदि न अंत हो,। इस पर ब्रह्मा जी ने कहा, मैं तुम्हारी आकांक्षा समझ तो सकता हूं मगर जैसे रोगी के माथे को हाथ लगाकर उसके बुखार से पीड़ित होने का पता लगाया जा सकता है, मगर उसका रोग निवारण तो 'सक्षम' ही कर सकता है। इसलिए तुम  योगेश्वर वाल्मीकि दयावान की शरण में जाओ। वहीं से तुम्हारे मन को शांति प्राप्त होगी।

तमसा नदी के तट पर बैठ भारद्वाज मुक्ति-दाता वाल्मीकि की आराधना करने लगे। यहीं पर प्रकट हो सृष्टिकर्ता ने भारद्वाज की तमाम शंकाओं का निवारण किया। भारद्वाज को संतुष्ट करने के लिए सवालों के जो जवाब दिए उन्हीं का संकलन है " योग वाशिष्ठ "। वह दिन था पूर्णिमा का। पूर्णिमा का एक अर्थ यह भी है की आदि भी वही, अंत भी वही। तभी तो विद्वानों मनीषियों ने कहा कि जो सिद्धांत इस ग्रंथ (योग वाशिष्ठ) मैं हैं। वह अन्य ग्रंथों में भी मिलेंगे भारद्वाज की मोक्ष की कामना थी जिसका अर्थ है, मोह का नाश। जहां इच्छाएं समाप्त हो जाएं। इच्छाएं ही दुख का कारण हैं। मोक्ष के बारे में बताते हुए भगवान वाल्मीकि कहते हैं  तप,दान और तीर्थ से भी मोक्ष की प्राप्ति नहीं होती। मोक्ष की प्राप्ति तो ज्ञान से होती है।

जिस दिन योग वाशिष्ठ का अस्तित्व संसार के सामने आया उस दिन को पावन वाल्मीकि का प्रकट उत्सव के रूप में मनाया जाता है। परमेश्वर के आगमन की इच्छा में कई घरों में प्रकट उत्सव से 4, 7, 14, 24, 34 या 44 दिन पहले "अखंड ज्योति" स्थापित की जाती है। इस अवसर पर कामना की जाती है कि इस बार सृष्टिकर्ता वाल्मीकि दयावान  हमारे घर मैं अपनी असीम अनुकंपा की अमृत वर्षा करेंगे। ऐसे में आदि नित्यनेम का पाठ करते हुए कहा और सुना जाता है।


पावन वाल्मीकि प्रकट उत्सव का धार्मिक महत्व


आदि धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, शरद पूर्णिमा के दिन चंद्रमा 16 कलाओं से परिपूर्ण होता है। इस रात चंद्रमा की किरणों में औषधीय गुण होता है। शरद पूर्णिमा की रात को चंद्रमा की चांदनी में अमृत वर्षा होती है। इस वजह से आदि धर्म प्रेमी प्रसाद के रूप में दूध की खीर बनाकर रात के समय में खीर खुले आसमान के नीचे रखते हैं, ताकि चंद्रमा की किरणें उसमें पड़ें। मान्यता है कि शरद पूर्णिमा के दिन खुले आसमान में खीर रखने से उसमें अमृत मिल जाता है। और फिर आदि धर्म प्रेमी उस अमृत मय खीर को प्रसाद के रूप में सभी लोगों को वितरण करते हैं ऐसी आदि धार्मिक मान्यता है।

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